09 जून, 2015

वीरान रहगुज़र - -

न कर इतनी मुहोब्बत कि पंछी भूल
जाए उड़ान भरना, कर ले ख़ुद
को ख़ुद तक ही मनहसर,*
और बन जाए ये
जिस्म महज़
एक
ख़ूबसूरत पिंजर। सामने हो खुला - -
आसमान, चाँद, सितारे, और
आकाशगंगा, बेबस रूह
तलाशे लेकिन टूटे
पंख अपना।
रंगीन
सपनों के शल्क लिए ज़िन्दगी न बन
जाए कहीं बंजर। ज़रूरत से
ज़्यादा की चाहत न
कर दे उजाड़
कहीं
दिलों की बस्ती,  दूर तक न रह जाएँ
कहीं वीरान रहगुज़र। न कर
इतनी मुहोब्बत कि पंछी
भूल जाए उड़ान
भरना, कर
ले ख़ुद
को ख़ुद तक ही मनहसर, - - - - - -

* *
- शांतनु सान्याल
* सिमित
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

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