23 मई, 2015

अधूरापन - -

अधूरापन है ज़िन्दगी की हक़ीक़त
यहाँ कोई शख़्स कामिल नहीं,
यूँ तो आज़माइशों की
अपनी अलग है
ख़ूबसूरती,
तुझ से मिल कर दिल को बहोत ही
सुकून मिलता है, फिर भी ये
दोस्त, तू मेरी मंज़िल
नहीं, बारहा
उठती
गिरती हैं जज़्बात की लहरें कुछ -
दूर तक जातीं भी ज़रूर हैं,
जिसे सोचते रहे हम
इक आख़री
किनारा,
क़रीब पहुँचने पे पता चला कि वो
है महज इक तैरता जज़ीरा,
समंदर का कोई
साहिल नहीं।

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-05-2015) को "माँगकर सम्मान पाने का चलन देखा यहाँ" {चर्चा - 1985} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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