28 अप्रैल, 2015

अंतहीन गहराइयों में - -

जब समंदर की लहरों में आ जाए इक
ठहराव सा, और रात डूब चली
हो अंतहीन गहराइयों में,
तुम्हें पाता हूँ, मैं
बहोत क़रीब
अपने, तब जिस्म मेरा बेजान सा और
तुम फिरती हो कहीं मेरी परछाइयों
में। चाँदनी का लिबास ओढ़े
तुम खेलती हो मेरे
वजूद से यूँ
रात भर, गोया आसमां ओ बादलों के -
दरमियां, है कोई  पुरअसरार
इक़रारनामा, किसी
लाफ़ानी ख़ुश्बू
की तरह
तुम बसती हो कहीं, मेरी रूह की अथाह
तन्हाइयों में - -

* *
- शांतनु सान्याल
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Clair De Lune, by Cyril Penny.jpg

15 अप्रैल, 2015

कुछ मौसमी फूल सजाए रखिए - -

शायद  वो कभी आए; सरे बज़्म भूली
याद की तरह, अपने  दर्द ओ
अलम को यूँ ही सहलाए
रखिए। 
वादियों में फिर धूप खिली है सहमी - -
सहमी, अहाते दिल के कुछ
मौसमी फूल सजाए
रखिए।
न जाने किस मोड़ पे उसका पता लिखा
हो, क़दीम ख़तों से यूँ ही दिल को
बहलाए रखिए।
हर एक दर
ओ बाम पे हैं यूँ तो चिराग़ रौशन, अंधेरों
से फिर भी ज़रा दोस्ती निभाए
रखिए। चाँद छुपते ही
फिर जागी हैं
किनारे
की सिसकियाँ, परछाइयों से गाहे बगाहे
ज़रा दामन बचाए रखिए। ये
आईना है बहोत ज़िद्दी;
कोई भी सुलह
नहीं करता,
बीते  लम्हात के सभी अक्स दिल में - -
बसाए रखिए। नाज़ुक थे सभी
रिश्ते; टूट गए आहिस्ता
आहिस्ता,
फिर भी मुस्कुराने का गुमां यूँ ही बनाए
रखिए। निगाह अश्क से हैं लबरेज़;
ओठों पे अहसास शबनमी,
दिल ए बियाबां को
यूँ ही बारहा
महकाए रखिए। शायद  वो कभी आए;
सरे बज़्म भूली याद की तरह,
अपने  दर्द ओ अलम
को यूँ ही सहलाए
रखिए।  

* *
- शांतनु सान्याल
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13 अप्रैल, 2015

सुंदरता की परिभाषा - -

सुंदरता की परिभाषा किताबों में नहीं,
मोतियों की तरह सीप के दिल
में, शायद रहती है वो कहीं,
कुछ गुमसुम सी,
कुछ सहमी
सहमी,
सजल आँखों के तीर उभरती है, वो -
अक्सर बारूह नज़र के सामने,
उसका पता शायर के
ख़्वाबों में नहीं।
सुंदरता की परिभाषा किताबों में नहीं।
न रूप न रंग, न कोई उपासना,
कभी अदृश्य, और कभी
वो इक मुखरित
प्रार्थना,
अहसास ए नफ़्स अतर, कभी दर्द की
अंतहीन लहर, दिल की रगों में
शायद वो बसता हैं कहीं,
क़ीमती असबाबों
में नहीं,
सुंदरता की परिभाषा किताबों में नहीं।

* *
- शांतनु सान्याल
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09 अप्रैल, 2015

कुछ भी याद नहीं - -

बूंद बूंद गिरती रही दिल पे तेरी, शबनमी
ओंठों की नमी, क़तरा क़तरा पिघलता
रहा रात भर, मेरे सीने की ज़मीं।
आसमां, चाँद  ओ सितारे,
न जाने कब उभरे
और कब
न जाने डूब गए सारे। इक तेरे चेहरे के -
सिवा, गुज़िश्ता रात हमें कुछ याद
नहीं, वो कोई तैरता हुआ
कहकशां था या
ख़ला ए
जुनूं, हम बहते रहे बाहम न जाने कहाँ
तक, ख़ुदा क़सम हमें कुछ भी
याद नहीं।

* *
- शांतनु सान्याल
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mull_sunset_from_ganavan_orig

02 अप्रैल, 2015

उड़ने का अहसास - -

ये आहटें हैं बड़ी जानी पहचानी,
मुद्दतों बाद, फिर किसी 
ने शायद मेरी सांसों 
को छुआ है। 
न जाने क्यूँ अचानक दर ओ - -
दीवार महकने से लगे हैं, 
फिर मेरी तन्हाई 
को जाने 
कुछ तो हुआ है । अब तलक मेरे 
जज़्बात बंद थे कहीं  रेशमी 
कोष के अंदर, कुछ 
सहमे सहमे 
से कुछ 
बेचैन शायद, अभी अभी खुले हैं 
तेरी निगाहों के दरीचे ! अभी 
अभी मेरी नाज़ुक पंखों 
को कहीं उड़ने का 
अहसास 
हुआ है। फिर किसी ने शायद मेरी 
सांसों को छुआ है। 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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transformation-complete-melissa-leray

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