27 मार्च, 2014

गुमनाम चेहरा - -

घनीभूत भावनाएं चाहती हैं विगलन 
आकाश से बादल तो हटाए कोई, 
हर शख्स यहाँ करता है 
इन्क़लाब की बातें,
बुझते हुए 
मशाल तो उठाए कोई, फिर चौराहों -
में है कानाफूसी का आलम,
मंचों में चल रहा फिर 
फ़रेबी खेल, भीड़ 
से निकल,
सच का आईना, इन चेहरों को दिखाए 
तो कोई, हर आदमी यहाँ दिखा 
रहा सब्ज़ बाग़, लिए 
हाथों में वादों 
के लम्बी 
फ़ेहरिस्त, इक मुद्दत से लम्हा लम्हा 
जो मर रहा है, तंग गली कूचों में 
कहीं, उस गुमनाम चेहरे 
से इन्हें मिलवाए 
तो कोई। 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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24 मार्च, 2014

अदृश्य स्फुलिंग - - -

फिर ज़िन्दगी तलाशती है उमस भरी 
दोपहरी, आँगन के किसी कोने 
में फिर उभरते हैं, कुछ 
कोयले से उकेरे 
गए, चौकोर 
घरों के 
खेल, नाज़ुक हाथों से फिर फिसलते 
से हैं, कौड़ियों में ढले हुए कुछ 
अनमोल पल, कुछ कच्ची 
प्यार की मज़बूत 
दीवारें, गिरते 
सँभलते 
से हैं फिर दिल के शीशमहल, फिर -
ज़िन्दगी में कोई कमी, कहीं 
न कहीं उभरती है किसी 
के  लिए, फिर शाम 
ढलते बारिश 
की बूंदों 
से निकलते हैं, अदृश्य स्फुलिंग - - -

* * 
- शांतनु सान्याल 


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23 मार्च, 2014

कोई ख्वाब रंगीन - -

कोई ख्वाब रंगीन फिर निगाहों में 
सजा जाते, तितलियों के परों 
से कुछ रेशमी अहसास 
काश चुरा लाते,
उसके 
मनुहारों में है, इक अजीब सी - -
कशिश, आकाशगंगा को 
काश, ज़मीं पे हम 
उतार लाते,
उसके 
आँखों में झलकती है इक अद्भुत -
सी मृगतृष्णा, असमय ही 
सावन को कहीं से, 
काश बुला 
लाते, 
उसकी चाहत में है शामिल तमाम 
आसमां, कोई शामियाना 
ख़ुशियों से लबरेज़,
काश उसके 
सामने 
तारों की मानिंद बेतरतीब बिखरा 
जाते, कोई ख्वाब रंगीन 
फिर निगाहों में 
सजा जाते, 

* * 
- शांतनु सान्याल 



art by martha kisling
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22 मार्च, 2014

दूर जाते जाते - -

दर्द के कोहरे से निकल अक्सर देखा 
है; तुझे ऐ ज़िन्दगी मुस्कुराते,
कोई तो है गुमनाम 
शख्स, जो रख 
जाता है; 
ओस में भीगे अहसास, बिहान से - -
पहले, नाज़ुक दिल के अहाते,
मैं चाह कर भी हो नहीं 
पाता लापता, 
उसकी 
नज़र में, वो कहीं न कहीं रहता है - -
शामिल गहराइयों तक मेरे 
वजूद में, मैं लौट आता 
हूँ अँधेरी राहों से 
अक्सर 
उसके सीने में तड़प कर, बहोत दूर 
जाते जाते।

* * 
- शांतनु सान्याल 

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wild bloom

19 मार्च, 2014

उजली रातों की त्रासदी - -

ज़रूरत से ज़ियादा उम्मीद न कर 
जाए तुम्हें परेशां, रहने दे 
मुझे यूँ ही गुमनाम 
गलियों में 
कहीं, 
न बना जाए तुम्हें, इश्क़ जानलेवा 
उजली रातों की त्रासदी, वो 
ख्वाब जिसकी उम्र हो 
मुख़्तसर, न 
दिखा 
मुझको ख्यालों की ज़िन्दगी, कहीं 
छलक न जाएँ मेरी ख़मोश 
निगाहें, न दे मुझे 
इतनी ख़ुशी,
बहोत 
कठिन है राह आतिश से गुज़रना
ऐ  मेरे हमनशीं  - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 



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art Letní kytice s chrpami_pastel

17 मार्च, 2014

कभी कभी यूँ भी होता है - -

कभी कभी ज़िन्दगी में यूँ भी होता 
है, जिसे हम अपना बहोत 
नज़दीक समझते हैं 
वो उतना ही 
दूर होता 
है, 
कभी कभी बंदगी में यूँ भी होता है -
जिसे हम अपना ख़ुदा सोचते 
हैं वही शख्स, संग ए 
बुत मग़रूर 
होता है, 
कभी कभी बेख़ुदी में यूँ भी होता है 
जिसे हम अपना हमनफ़स 
समझते हैं वही दोस्त,
ज़हर बुझे तीरों 
से भरपूर 
होता 
है, 
कभी कभी दीवानगी में यूँ भी होता 
है, जिसे हम दिल ओ जान 
से चाहते हैं वही सनम,
कहीं न कहीं 
बेवफ़ा 
ज़रूर 
होता है, जिसे हम अपना बहोत - -
नज़दीक समझते हैं 
वो उतना ही 
दूर होता 
है, 

* * 
- शांतनु सान्याल 


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16 मार्च, 2014

शहर ए जज़्बात - -

बहोत नज़दीक से गुज़री तो है 
बाद ए सबा, फिर भी न 
जाने क्यूँ दिल में 
सुलगते से 
हैं अरमां,
इक पुरअसरार सूनापन रहा -
उम्र भर उसे खोने के बाद, 
जब कभी वो मिला, 
बहोत बुझा 
बुझा 
सा लगा, न जाने क्यूँ वो चाह 
कर भी किसी और का न 
हो सका, वो कोई 
दिल फ़रेब 
बुत 
था या बहोत नाज़ुक था मेरा 
ईमान, लाख कोशिशों 
के बाद, न जाने 
क्यूँ दिल 
उसे 
भूला न सका, वीरान शहर ए 
जज़्बात, दोबारा कभी 
बसा न सका.

* * 
- शांतनु सान्याल 

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13 मार्च, 2014

बोझिल साँसे - -

मुस्कुराने की चाहत लिए सीने में, 
फिर रात गुज़रेगी नंगे पांव,
सुलगती वादियों से हो 
कर, दूर बहोत 
दूर, है कहीं 
सुबह 
की मुलायम हवा या पलकों की -
घनी छांव, कोई दस्तक दे 
रहा हौले हौले, या 
नरम धूप की 
मानिंद,
निःशर्त, तेरी मुहोब्बत जगाती है, 
मुझे कच्ची नींद से रह रह 
कर, आख़री पहर ये 
कौन है फेरीवाला,
जो आवाज़ 
देता है, 
सुनसान राहों से अक्सर, ज़बरन -
रख जाता है वो शीशे का 
खिलौना, मेरी 
दहलीज़ के 
ऊपर, 
सारी रात भिगोती है उसे शबनम,
तमाम रात मेरी साँसे रहती 
हैं बोझिल - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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Gin Lammert Pastel & Oil
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ख्वाबों के क़ाफ़िले - -

कहाँ रुकते हैं रोके ख्वाबों के क़ाफ़िले,
वक़्त मिटाता रहा इश्क़ ए निशां,
रेत पर मुसलसल, कहाँ 
मिटते हैं लेकिन 
निगाहों के 
सिलसिले, हो कोई मौज ए दरिया या 
तूफ़ान दीवाना, हर हाल में 
ख़ामोश साहिल 
देखता है 
समन्दर के मरहले, हर दौर का होता 
है अपना अलग इन्क़लाब,
अँधेरा घिरते कोई 
चिराग़ ए शाम 
जले या 
न जले, कहाँ रुकते हैं रोके ख्वाबों के 
क़ाफ़िले,

* * 
- शांतनु सान्याल 
मरहले - क़दम, चरण  
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art by k. juric

12 मार्च, 2014

नायाब शै - -

ग़र हर चीज़ मिल जाए दहलीज़ पे,
ज़िन्दगी का मज़ा हो जाए
बेमानी, तक़दीर का
शुक्रिया, कि
उसने
दी है सौगात ए गुल, काँटों के साथ,
अंतहीन चाहतों की फ़ेहरिस्त,
और किसी इक कोने
में तलाशती
दिल की
ख़ुशी, कैसे समझाए ऐ दोस्त, कि
ये मेरी मंज़िल नहीं, वो इश्क़
जो कर जाए सुलगते
रूह को भी
पुरनम,
आसां नहीं, उस नायाब शै को यूँ
खोज पाना - -

* *
- शांतनु सान्याल

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art by svetlana novikova

11 मार्च, 2014

ख़ूबसूरत फ़रेब - -

वो कोई ख़ूबसूरत फ़रेब था, जिसने 
मुझे ख़ुद से तारुफ़ कराया, वो 
कोई आईना था, शायद 
जिसने वजूद को 
सोते से है -
जगाया,
रहनुमाओं के भीड़ में थी लापता - - 
कहीं मेरी मंज़िल, मुमकिन 
है, वो कोई बिखरता 
ख्वाब ही था 
जिसने,
बिखरने से पहले  है मुझे बचाया, न 
देख फिर मुझे, यूँ हैरत भरी 
निगाह से, मैं नहीं 
कोई धनक 
रंगीन,
कि उभर के गुमशुदा हो जाऊंगा - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


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art by giti ala

10 मार्च, 2014

जा रहे जाने कहाँ - -

मुख़्तसर ज़िन्दगी और चाहतें -
बेइंतहा, उभरते हुए 
ग़ुबार के बादल 
दूर दूर 
तक,
भटकती रूह तलाशे मंज़िल का 
निशां, हर सांस बोझिल, 
हर चेहरा लगे 
बेचैन, 
जर्द चाँदनी, फीका फीका सा - -
आसमां, सहमी सहमी
सी हैं दर्द ए 
परछाइयाँ !
जाना था और कहीं, जा रहे जाने 
कहाँ, किस मोड़ पे छोड़ 
आए दिल वाबस्तगी,
जाने कहाँ छूटा 
तेरे इश्क़ का 
कारवां,

* * 
- शांतनु सान्याल 

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delicate feeling

08 मार्च, 2014

लकीर ए किनारा - -

बिखरे हुए पलों को हमने लाख चाहा -
समेटना, कभी आँखों से फिसले
बूंद बूंद, कभी वो ख़ामोश
जले क़तरा क़तरा
दिल के
बहोत अंदर, ढलती हुई रात को हमने
लाख चाहा जकड़ना, कभी वो
पिघलती रही बार बार,
कभी बिखरती
रही तार
तार,
सीने के बहोत अंदर, गुल ए मौसम -
को चाहा हमने बहोत रोकना,
वो जाती रही रुक रुक
के हद ए नज़र,
हम देखते
रहे ऐ
ज़िन्दगी तुझे डूबती नज़रों से बारहा - -
कि कहीं तो दिखाई दे लकीर ए
किनारा, कहीं तो मिले
डूबती कश्ती को
उभरने का
सहारा,

* *
- शांतनु सान्याल

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Painting by Oscar Rayneri

07 मार्च, 2014

तमाशबीन चेहरे - -

उस भीड़ में तुम भी थे शामिल,
अब न पूछो किसने किया 
था, मुझे लहूलुहान 
पहले, उन 
पत्थरों 
में न था किसी का नाम खुदा -
हुआ, तमाशबीन और 
गुनाहगारों में फ़र्क़ 
था बहुत 
कम,
अलफ़ाज़ अपनी जगह लेकिन 
हिस्सेदारी कम न थी,
ख़ामोश ज़ुल्म 
को देखना 
भी है 
ख़ुद से दग़ाबाज़ी, ग़र ज़मीर -
हो ज़िंदा, सिर्फ़ तनक़ीद 
नहीं काफ़ी इंक़लाब 
ए ज़िन्दगी 
में - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


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artist nancy medina 2

03 मार्च, 2014

नफ़स दर नफ़स - -

अभी तक हो तुम इक अहसास ए 
ख़ुश्बू, सिर्फ़ बिखरती हुई -
जिस्म के इर्द गिर्द, 
अभी तक 
तुमने
तो छुआ ही नहीं रूह की गहराइयाँ,
कैसे मान लूँ मुहोब्बत को 
बेशतर ख़ुदा, वो चाह  
जो बना दे मुझे 
विषहर,
ले चल ये दोस्त मुझे उसी राह पर !
जहाँ आत्म अहंकार को मिले 
मुक्ति, जहाँ अपनत्व 
का दायरा हो जाए 
असीमित, 
ढाल 
मुझे अपनी चाहत में इस तरह कि 
ज़िन्दगी बन जाए अटूट 
कोई मिट्टी का घड़ा,
सोख ले तमाम 
दर्द अपने 
या पराए दिल की सतह पे ख़ामोश,
नफ़स दर नफ़स !

* * 
- शांतनु सान्याल  

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Paintings By Elizabeth Blaylock

उन्मुक्त आकाश - -

उस संकुचित परिधि के बाहर  
भी है एक विशाल दुनिया, 
कभी स्वयं से बाहर 
निकल कर 
तो देखें, 
प्रतिबिंबित किरणों का दोष -
कुछ भी न था, अनुकूल 
बीज ही थे अंकुरित
पौधे, प्रकृत -
सत्य 
को झुठलाना नहीं सहज, ये 
उभरती है अदृश्य 
शक्तियों के 
साथ 
अप्रत्याशित रूप से, तमाम -
बही ख़ाते रहे शून्य 
अंत में, टूटते 
तारे को 
को न थाम पाया, वो विस्तीर्ण 
नील आकाश - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


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StairWindow

02 मार्च, 2014

गहराइयाँ - -

रात की अपनी हैं गहराइयाँ 
फिर भी निगाहों में 
आख़री पहर 
किसी ने 
सजा दी, चुपके से स्वप्नील 
कहानियाँ, निजात न 
मिली उम्र भर दर्द 
ओ ग़म से 
मुझे, 
फिर भी दिल को छूती रहीं -
कहीं न कहीं अनजाने 
इश्क़ की वो हसीं 
परछाइयाँ,
वो दूर हो के भी है, रूह से यूँ 
वाबस्ता, गुल खिले 
बग़ैर महकती 
है मेरी 
तन्हाइयां, रात की अपनी हैं 
गहराइयाँ  - -

* * 
- शांतनु सान्याल 

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night dance

01 मार्च, 2014

पोशीदा आग - -

इक पोशीदा आग लिए दिल में,
आज फिर हैं हम मुख़ातिब
तेरी महफ़िल में, अब
देखना है बाक़ी,
कितना
अपनापन है, उस दूर सरकते -
हुए साहिल में, हम फिर
बह चले हैं न जाने
कहाँ, तेरी
निगाहों
के हमराह दूर तक, कौन सोचे
अब, क्या है क्या नहीं,
उस उभरते हुए
मंज़िल में,
तमाम रस्ते ख़त्म से हो गए - -
तुझ तक पहुँचते पहुँचते,
आज फिर हैं, हम
मुख़ातिब
तेरी
महफ़िल में।
* *
- शांतनु सान्याल


 

art by Aldawood_Sherri

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