12 अक्तूबर, 2013

राहत ए गुलिस्तां - -

बज़्म में है तेरी क्यूँ ख़ामोशी दूर तलक,
हम तो आए थे बड़ी उम्मीद लिए,
कि ज़िन्दगी से हो जाए खुल 
के मुलाक़ात, ये क्या 
हर चेहरा लगे 
गुमसुम,
हर लब पे गोया पाबंदी आयद, ये कैसी 
है तेरी महफ़िल, उभरते तो हैं रह 
रह कर इन्क़लाब ए अरमां, 
लेकिन बदोन सदा,
ये कौन सी 
ज़मीं है, 
ये कैसा है आसमां, लौटती नहीं जहाँ से 
गूँज, तब्दील ए जहां बन कर !
बरसती नहीं क्यूँ तेरी 
निगाह करम,
हर रूह 
पे राहत ए गुलिस्तां बन कर - - - - - - 
* * 
- शांतनु सान्याल  

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by kb_Bourdet_Susan

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