15 अगस्त, 2013

मिलो इस तरह - -

फिर मिलो इस तरह कि दरमियां अपने 
कोई ख़ालीपन न रहे बाक़ी, हो सिर्फ़ 
निगाहों से इक पुर ख़ामोश 
मुबादला ए जज़्बात, 
सांसों से हो 
राब्ता
इस क़दर, कोई अपनापन न रहे बाक़ी !
ज़माने की नज़र में उठे है फिर 
तलातुम कोई, या इश्क़ 
का है आलमी 
असर,
तुम बरसो सावन की मानिंद बेलगाम 
इस तरह कि दिल में कोई -
ख़लिश, बंजारापन 
न रहे बाक़ी,
खिलो 
तो सही काँटों से उभर कर इक बार यूँ  - 
कि तासीर दर्द बदल जाए - - 
* * 
- शांतनु सान्याल

मुबादला - विनिमय
तलातुम - बेचैनी 

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
PAINTING BY BARBARA FOX

2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम बरसो सावन की मानिंद बेलगाम
    इस तरह कि दिल में कोई -
    ख़लिश, बंजारापन
    न रहे बाक़ी..... waah. bohat khoob.

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