21 जुलाई, 2013

यकदिगर आशना फिर कभी - -

निगाहों से हो गुफ़्तगू, यकदिगर आशना फिर कभी,
 
बज़्म ए आसमान को, ज़रा और होने दो इशराक़ी,
हूँ ग़ुबार, कोई संग तिलिस्म, पहचानना फिर कभी,

ये वजूद है इसरार आमेज़, या कोई मुजस्मा ख़ाक -
रहने भी दो यूँ ख़्वाबआलूद, इसे अपनाना फिर कभी,

उस मोड़ से सभी रास्ते, न जाने कहाँ होते हैं गुम -
अभी तो हो हम नफ़स, वहां जाना आना फिर कभी,

निगाहों से हो गुफ़्तगू, यकदिगर आशना फिर कभी,
 * *
- शांतनु सान्याल
यकदिगर - परस्पर  इशराक़ी - उज्जवल

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