23 जुलाई, 2013

उफ़क़ के हमराह - -

उफ़क़ के हमराह उगते हैं कुछ रौशनी 
के पौधे, अफ़साना या हक़ीक़त 
जो भी हो मुझे ले चल, 
उसी जानिब 
जहाँ 
प्यासी रूहों को मिलती है तस्कीन ए 
मुक्कमल, तमाम फ़र्क़ जहाँ 
हो जाएँ बेमानी, न तू 
रहे सिर्फ़ तू, न 
मेरा वजूद 
हो मेरा,
इक ऐसी दुनिया जहाँ इंसानियत हो 
नूर हक़ीक़ी, बाक़ी सब कुछ 
फ़क़्त अहसास ए 
ख़याली !
* * 
- शांतनु सान्याल 
art by stella dunkley

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past