06 मई, 2013

उजाले की तलाश - -

न कर मेरा इंतज़ार, आख़री लोकल से मैं 
न लौट पाऊंगा, खो चुका हूँ मैं दुनिया 
की भीड़ में इक बेनाम अजनबी 
की तरह, बहोत मुश्किल 
है मुझे खोज पाना,
कि बंद कर 
लो 
सदर दरवाज़ा रात गहराने से पहले, न -
कर किसी दस्तक की ख़्वाहिश,
है हवाओं में ज़हर आलूद 
उँगलियों के दाग़ 
नुमायां !
न 
जाने किस रूप में लूट जाए कोई यूँ मेरा 
नाम ले के, दर्द तेरा है कितना 
असली या बातिल मुझे 
ख़बर नहीं, फिर 
भी मेरी 
जां !
मुहोब्बत का भरम रहने दे सुबह होने - - 
तलक, कि उभर सकता हूँ मैं 
फिर अचानक, अब तक 
साहिल की तलाश 
है मेरे दिल में 
ज़िन्दा !
* * 
- शांतनु सान्याल 

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