22 फ़रवरी, 2013

तारीफ़नश्दा - -

ये कांच से नाज़ुक, हसीं अहसास !
कि इक खौफ़ सा दिल में
बना रहता है हर
लम्हा, कहीं
टूट न
जाए ये महीन धागे, मख़फ़ी रंगों
में ढले, न खेल यूँ, तू मेरी
धड़कनों के साथ, कि
सांस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, बहोत तरमीन के बाद
कहीं उभरी है तस्वीर ए
मुक़्क़दस, ये इश्क़
नहीं जिस्मानी,
कि मेरी
मुहोब्बत है इक तारीफ़नश्दा - -
अहसास ए बेनज़ीर !
* *
- शांतनु सान्याल

अर्थ -
मख़फ़ी - रहस्य
तरमीन - साधना
तारीफ़नश्दा - अपरिभाषित
 बेनज़ीर - अद्वित्य

 

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