02 फ़रवरी, 2013

मबहम चश्म - -


लब ख़ामोश रहे, मबहम चश्म से उभरे
कुछ बाअहसास दर्द, रफ़्ता रफ़्ता
उसका चेहरा दूर होता गया,
इक धुंध सी छायी
रही दरमियां
हमारे,
जाती हुई बहार का दामन हाथों से छूट
गया, लौट कर शायद उसने देखा
होगा ज़रूर, इक तीरगी के
सिवा कुछ न था दूर
तक उसके जाने
के बाद !
चाँद ढला भी नहीं,और उजालों की - -
दुनिया कोई लूट गया।
* *
- शांतनु सान्याल
मबहम चश्म - धुंधली आँखें

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