25 फ़रवरी, 2013

जिल्द के मानी - -

इक  रौशनी जो कर जाए अंतःकरण तक
रौशन, इक बूंद जो तेरी अनुकंपित
निगाह से टपके, कर जाए
जीवन मुक्कमल,
हर साँस में
हो जैसे
तेरा अक्स निहित, कि किसीका दर्द ओ -
ग़म न हो मुझसे जुदा, ये अहसास
न मुरझाये कभी कि इक
इंसानियत ही है
आला तरीन
मज़हब,
बाक़ी किताबों की बातें रहने दे सुनहरी - -
सफ़ात में बंद, ख़ूबसूरत जिल्द
के मानी नहीं कि दास्तां
ए ज़िन्दगी भी होगी
दिलकश !
* *
- शांतनु सान्याल  


22 फ़रवरी, 2013

तारीफ़नश्दा - -

ये कांच से नाज़ुक, हसीं अहसास !
कि इक खौफ़ सा दिल में
बना रहता है हर
लम्हा, कहीं
टूट न
जाए ये महीन धागे, मख़फ़ी रंगों
में ढले, न खेल यूँ, तू मेरी
धड़कनों के साथ, कि
सांस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, बहोत तरमीन के बाद
कहीं उभरी है तस्वीर ए
मुक़्क़दस, ये इश्क़
नहीं जिस्मानी,
कि मेरी
मुहोब्बत है इक तारीफ़नश्दा - -
अहसास ए बेनज़ीर !
* *
- शांतनु सान्याल

अर्थ -
मख़फ़ी - रहस्य
तरमीन - साधना
तारीफ़नश्दा - अपरिभाषित
 बेनज़ीर - अद्वित्य

 

16 फ़रवरी, 2013

ख़्वाब नए - -

न फ़लक, न ज़मीं, हद ए नज़र, ये
कैसा इदराक दिल में है छाने
चला, इक ख़ालीपन
है हर सिम्त,
ग़ैर
मुन्तज़िर कोई नादीद अब्र, हो - -
जैसे बेक़रार सा, बिखर
जाने को,ये कैसा
जज़्ब तासीर
है उनकी  
निगाहों का, हर शै है कोहरे में डूबा
हुआ इक सिवाय उन
झिलमिलाते
साहिल
ए पलक, कि हर बार ज़िन्दगी - -
उभर आती है मुक़्क़दस
सीडियों के किनारे,
वो पोशीदा
हाथ
मुझे कभी डूबने नहीं देते, हर बार
जल उठते हैं उदास, चिराग़ -
ए शब लिए सीने में,
सुलगते ख़्वाब
नए - -
* *
- शांतनु सान्याल

ख़्वाब नए - -



13 फ़रवरी, 2013

अभिलाष चिरंतन - -


अशेष कहाँ, ये अभिलाष चिरंतन
उस छवि में निहित जीवन मरण,
प्रति पल प्रगाढ़ झंझावात, प्रति -
क्षण सम्मुख,एक खंडित दर्पण।

उदय अस्त, अहर्निश निरंतरता
पुष्पित मन, कभी बिन आवरण,
मृगजल या मायावी प्रणय गंध -
नीरव, कभी अधीर अंतःकरण।

तृषित नेत्र व्याकुल देखे चहुँ दिश
न ही निद्रित, न ही पूर्ण जागरण,
सत्य-असत्य या कोई दृष्टी भ्रम
अज्ञात यात्रा दे, पुनः आमन्त्रण ।
* *
- शांतनु सान्याल
 

07 फ़रवरी, 2013

तेरी इक नज़र - -

अहसास अबरी, साँस मद्धम, कभी तो
छू जा, तू मेरी मंजमद जज़्बात !
इक ज़माने से, लिए बैठे हैं -
दिल में, टूट कर
बिखरने
की ख़्वाहिश, न कर यूँ नज़र अंदाज़ -
कि बड़ी मुश्किल से कभी -
उभरते हैं, सहरा ए
आसमां पे
अब्र घुम्मकड़, रेत में दफ़न ख़्वाबों से
कभी कभी खिलते हैं गुल -
ख़ारदार, कि तेरी इक
नज़र में है
मोजूद,
उम्र भर की दुआओं का असर - -
* *
- शांतनु सान्याल  


05 फ़रवरी, 2013

रूह ख़ाना बदोश !

मेरे हिस्से की धूप थी काफ़ी या नाकाफ़ी, -
अब उसके मानी कुछ भी नहीं, ये
सच है कि उस महदूद दायरे
में, जीना हमने सीख
लिया, इक ज़रा
सी रौशनी ही
बहोत थी गुंचा ए तक़दीर बदलने के लिए,
अँधेरा है दोस्त क़दीमी अपना, हर
वक़्त रहता है दिल के क़रीब
यूँ साए की तरह, धूप
तो है रूह ख़ाना
बदोश !
वक़त ही नहीं देता ज़रा सँभलने के लिए,
अभी अभी था आसमां पर छाया
शाह ए रौशनी की मानिंद,
पलक झपकते न
जाने कहाँ
से उड़ आये बादलों के गिरोह आवारा, अब
भीगने के सिवा कोई रास्ता नहीं
बाक़ी  - -
* *
- शांतनु सान्याल

02 फ़रवरी, 2013

मबहम चश्म - -


लब ख़ामोश रहे, मबहम चश्म से उभरे
कुछ बाअहसास दर्द, रफ़्ता रफ़्ता
उसका चेहरा दूर होता गया,
इक धुंध सी छायी
रही दरमियां
हमारे,
जाती हुई बहार का दामन हाथों से छूट
गया, लौट कर शायद उसने देखा
होगा ज़रूर, इक तीरगी के
सिवा कुछ न था दूर
तक उसके जाने
के बाद !
चाँद ढला भी नहीं,और उजालों की - -
दुनिया कोई लूट गया।
* *
- शांतनु सान्याल
मबहम चश्म - धुंधली आँखें

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