02 नवंबर, 2012

आख़री पहर - -

ख़्वाब टूटने का सोग मनाएं क्यूँ कर !
शीशा ए ख़याल था सो टूट गया, 
अभी तक उम्मीद है मेरी 
बाक़ी, ज़िन्दगी में 
फिर अनचाहा 
रोग लगाएं
क्यूँ कर, 
इधर से कहीं गुज़रती है आख़री पहर 
कहकशां, यहीं पे कहीं रुकता है 
चाँद घड़ी दो घड़ी, ये तेरे 
सफ़ाफ़ चश्म हैं या 
कोई पोशीदा 
मुसाफ़िरख़ाना, हर क़दम राज़ गहरा !
हर जानिब छाए संदली धुआं,
सफ़ा दर सफ़ा कोई
लिख रहा हो 
जैसे 
वहमआलूद, इक ख़ूबसूरत  सफ़र ए 
अफ़साना - - 

- शांतनु सान्याल
 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
सोग - दुःख 
कहकशां - आकाशगंगा 
सफ़ाफ़ चश्म - पारदर्शी आँख 
पोशीदा - छुपा हुआ 
सफ़ा दर सफ़ा - पृष्ठ प्रति पृष्ठ 
वहमआलूद - मायावी 
art of steave phillips 
--آخری پہر

خواب ٹوٹنے کا سوگے مناے کیوں کر!
شیشہ اے خیال تھا سو ٹوٹ گیا،
ابھی تک امید ہے میری
باقی، زندگی میں
پھر انچاها
روگ  لگائیں
کیوں کر،
ادھر سے کہیں گزرتی ہے آخری پہر
کہکشاں ، یہیں پہ کہیں ركتا ہے
چاند گھڑی دو گھڑی، یہ تیرے
سفاف چشم ہے یا
کوئی پوشیدہ
مسافرخانا، ہر قدم راز گہرا!
ہر جانب چھائے صندلی  دھواں،
صفا  درصفا  کوئی
لکھ رہا ہو
جیسے
وهم آلود ، حیرت انگیز زندگی کا
اک افسانہ -

-شانتنو  سانیال

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past