06 जुलाई, 2012

नज़्म - - जूनून ए हसरत,


इतना मुश्किल भी न था, बिछड़ कर मिलना
दोबारा, ये बात और है, कि उसने कभी
कोशिश ही न की, देर तक  रुके
रुके से थे, ख़ुश्बुओं के
कारवां, बहार
जा चुकी
तो
क्या हुआ, अभी तक माहौल में है उसकी -
सांसों की महक बाक़ी, हवाओं में
है वही ताज़गी, वही पहली
नज़र का जादू, अब
तलक भटकते
हैं जूनून ए
हसरत,
फिर वही *जुस्तजू बेक़रार मंज़िल मंज़िल,
*सहरा सहरा फिर वही *तिशनगी
अंतहीन - - *लाइन्तहां

- शांतनु सान्याल
अरबी / फारसी शब्द
* तिशनगी - प्यास
 *लाइन्तहां - अंतहीन
 * सहरा - मरुस्थल
* जुस्तजू - खोज



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