25 अप्रैल, 2012


अभिनव अंगीकार 

वो कोई अन्य न था, मेरी अपनी ही प्रतिच्छाया थी
प्रश्न चिन्हों को समेटे, कभी दहलीज और 
कभी अहाते में, कदाचित खड़ा रहा
प्रखर धूप हो या चांदनी रात, 
खुले वक्षस्थल में लिए
समय  चक्र 
निशान, 
कोई निवृत आनंद हो जैसे युगों से प्रतीक्षारत, कर 
चला हो नीरव अनुसन्धान, कभी आमने 
सामने, कभी अदृश्य दर्पण की 
तरह सतत अनुसरण, मैं 
चाह कर भी उसे 
अपरिग्रह 
कर न सका, वो मेरे अस्तित्व के रास्ते कब व कैसे 
अंतर्मन की गहराई लांघता रहा, हर पल मेरा 
अहम, अभिमान, ईर्ष्या का दहन करता 
रहा मुझे पता ही न चला, कोई तो 
है,जो छद्म रूप लिए उसे कर 
जाता है,सक्रीय और 
मैं झुकाता हूँ   
शीश बेझिझक, करता हूँ अपनी भूलों का पश्चाताप,
हर दिन जीवन  करता है उसे अभिनव रूप 
में अंगीकार - - - 

- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/

painting by Ivan Aivazovsky 

23 अप्रैल, 2012

पतझर से हो कर गुज़रे हैं ये ख़्वाब तमाम रात 
तभी उभरते तूफ़ानी हवाओं से नहीं डरते,
हर क़दम इक तलातुम, हर मोड़ पे दुस्वारियां 
ताबीरे हयात, जूनूनी बहावों से नहीं डरते,
- शांतनु सान्याल 
midnight - midnight - Tania Farrugia 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/

09 अप्रैल, 2012

नज़्म ( اردو عبارت کے ساتھ )तिश्नगी

कुछ और वजह होगी भूल जाने की, वो शख्स 
कभी था वाबस्ता ज़िन्दगी से, आसां
कहाँ ज़मीर को दग़ा देना, इक 
आग बुझा दिल में फिर 
दोबारा आग लगा 
लेना, वो 
कोई 
राज़ लिए सीने में भटकता है सहरा सहरा, 
मुमकिन कहाँ जहाँ में, हर क़दम 
पे गुमनाम चश्मों का उभर 
आना, वो इक ऐसी 
तिश्नगी है 
जो 
लब से उठती है ख़ामोश, रूह पे होती तमाम,
बहुत ही मुश्किल मेरे अहबाब - ए -
जावदाँ, सांसों का जिस्म 
से जुदा होना - - 

- शांतनु सान्याल 
نظم 
کچھ اور وجہ ہوگی بھول جانے کی، وہ شخص
کبھی تھا وابستہ زندگی سے، آساں
کہاں ضمیر کو دغا دینا، اک
آگ بجھا دل میں پھر
دوبارہ آگ لگا
لینا، وہ
کوئی
راز لئے سینے میں بھٹكتا ہے صحرا صحرا،
ممکن کہاں جہاں میں، ہر قدم
پہ گمنام چشموں کا ابھر
آنا، وہ اک ایسی
تشنگي ہے
جو
لب سے اٹھتی ہے خاموش، روح پہ ہوتی تمام،
بہت ہی مشکل میرے احباب - اے -
جاوداں ، سانسوں کا جسم
سے جدا ہونا -

- شانتنو سانیال 
painting by Barbara Fox

08 अप्रैल, 2012

नज़्म - - लबरेज़ ख़्वाब

जालीदार मेहराब से, जब रात ढलते -
उतरती है चांदनी, उनींदी आँखों
में तैरते हैं कुछ ख़ुश्बुओं
में लबरेज़ ख़्वाब,
कुछ ख़ामोश
वादे
लिए, अनकहे हज़ार अफ़साने, कोई
दहलीज़ पे रख जाता है चुपके
से हैरत अंगेज़ तोहफ़ा,
पंखुड़ियों में
लिपटा
इक बंद लिफ़ाफ़ा, नज़्म या ग़ज़ल न
जाने क्या है उसमें, रात भर
इक मीठा सा दर्द लिए
सीने में, वजूद
सोचता है
उसे खोलें की नहीं, राज़ ग़र खुल जाए
तो ज़िन्दगी में लुत्फ़ क्या
बाक़ी होगा, यही
ख्याल मुझे
तमाम रात सांस लेने नहीं देता, ये तेरा
अंदाज़े बयां है या जानलेवा
इक़रार नामा, अक्सर
सोचता है दिल
लेकिन
वो तहरीरे ज़िन्दगी चाह कर भी पढ़ नहीं
पाता, हर बार सोचता है ज़ेहन
हर बार चाहता है कहना,
मुझे तुमसे मुहोब्बत
है लेकिन हर
बार ये
कह नहीं पाता, लौट जातीं हैं जालियों से
छन कर आने वाली रौशनी या
घिर चलीं हैं फिर आसमां
में बदलियाँ - -

- शांतनु सान्याल

07 अप्रैल, 2012


सहयात्री 

ये  नीरवता  जो अपने आप में ही है एक 
विप्लव, भूल से न  समझे कोई 
सब कुछ  है अच्छा, न 
जाने कब उठे 
सहसा 
किस  दिशा से ले कर अग्निशिखा, कर 
जाए  पलक  झपकते  सब  तहस
नहस, विस्मृत  व  मृत
के  शाब्दिक अर्थों 
में  है अंतर, 
भूलना और भूला  देना  दोनों  सहज  नहीं, 
रत्न जड़ित मुकुट, मयूर -
सिंहासन और धूसर 
कंटकमय  पथ 
के  मध्य 
की  दूरी  बहुत  नहीं, कब  कालचक्र थम 
जाए  इसकी भविष्यवाणी 
सरल  नहीं, अदृश्य 
अभिशाप जब 
हो जाएँ 
जागृत, मौन शक्ति कर जाती  हैं पलभर 
में  स्वाहा, कौन राजा और कौन
रंक, उस पथ के यात्री 
सभी  समान, 
रिक्त 
हाथ सभी मुसाफिर, कभी तू  गंतव्य की 
ओर  कभी मैं आकाश पार, 
फिर  क्यूँ  इतना  करे 
हाहाकार - - - 

- शांतनु सान्याल 
shadows midnight 



06 अप्रैल, 2012

नज़्म ( اردو عبارت کے ساتھ ) दुआओं की बस्ती

तंग दायरे से निकल कर तो देख ज़रा बाहर
बेइन्तहां ख़ूबसूरत है ये दुनिया, ख़ुद
तलक  महदूद होने का नाम
नहीं ज़िन्दगी, नरम
धूप की मानिंद
बिखर जा वादियों में अल सुबह, बेक़रार से
हैं, कितने ही ख़्वाब शबनम में भीगे
हुए, आ बाद - ए - नसीम के
हमराह, दिल के जज़्बात
हैं बेसबर खिल जाने
के लिए, तेरा
हर क़दम हो मंज़िल - ए - मसावात की
जानिब, यहाँ अपना पराया कोई
नहीं, ये है दुआओं की बस्ती,
यहाँ हर कोई मिस्कीं
और हर दिल है
शहंशाह,
छोड़ जा क़दमों के निशां, ये राह जाती है
बहोत दूर, दर्ब - ए - बहिश्त
की तरफ, न सोच देर
तक की ज़िन्दगी
है मुख़्तसर,

- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/ 
 نظم


تنگ دائرے سے نکل کر تو دیکھ ذرا باہر
بےنتها خوبصورت ہے یہ دنیا، خود
تلک مهدود ہونے کا نام
نہیں زندگی، نرم
دھوپ کی ماند
بکھر جا مدعیان میں القاعدہ صبح، بےقرار سے
ہیں، کتنے ہی خواب شبنم میں بھیگے
ہوئے، آ بعد - اے - نسیم کے
ہمراہ، دل کے جذبات
ہیں بےسبر کھل جانے
کے لئے، تیرا
ہر قدم ہو منزل - اے - مساوات کی
جانب، یہاں اپنا کا ہے کوئی
نہیں، یہ ہے دعاؤں کی بستی،
یہاں ہر کوئی مسكي
اور ہر دل ہے
شہنشاہ،
چھوڑ جا قدموں کے نشاں، یہ راہ جاتی ہے
بهوت دور، درب - اے - بهشت
کی طرف، نہ سوچ دیر
تک کی زندگی
ہے مختصر،
-شانتنو سانیال




04 अप्रैल, 2012


मध्य रात्रि 

जलती बुझती जुगनू सी कुछ बातें, मन 
के सजल तरंगों में लिखती हों जैसे 
प्रतिबिंबित कविताएँ, मेह 
बरसे आधी रात या 
छू जाए किसी 
के आँखों 
से निकलती, रहस्यमयी मद्धम नीली 
रौशनी, दूर तक  बिखरे हों जैसे 
श्वेत रंगी वन्य कुसुम 
या तुषार कण 
पिघलने 
को हों व्याकुल, कोई आहट जो घेरती है 
मन को, या चांदनी में नहाये हुए 
देवदार फेंकते हैं जादुई
प्रतिच्छाया, एक 
मीठा सा 
आभास या है कोई आसपास, बढ़ चले 
हैं क़दम किसी की तरफ अनजान,
अनायास, न जाने कौन है 
छुपा सा बहुत ही 
नज़दीक,
भीगे भावनाओं के क़रीब, या ज़िन्दगी
चल रही ख़्वाब के 
हमराह - - 

- शांतनु सान्याल 
 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
mountain range - source Cheryl gallery 



03 अप्रैल, 2012

नज़्म - - मुहोब्बत के हरूफ़,

कुछ भी तो नहीं मेरे पास, फिर है किस
चीज़ की तुम्हें तलाश, कहीं और 
हो शायद वो गुमशुदा, कोई 
चाहत या ख़्वाब  की 
ताबीर, न  देख 
मुझे यूँ 
पुरअसरार निगाहों से बार बार, मैं वो 
नहीं जिसकी है तुम्हें तलाश, 
वज़ाहत जो भी हो इस 
वजूद के मानी हैं 
मुख़्तसर,
इक  चिराग़ जो बुझ  के भी जलता है 
बारहा शाम ढलते ही, बामे 
मुक़द्दस ढह चुका है 
तो क्या हुआ, 
अब भी 
हैं मौजूद कुछ पोशीदा इबादत के निशां, 
ग़र चाहो तो ले जाओ कुछ बिखरे 
मुहोब्बत के हरूफ़, कुछ 
अश्के रूह, इसके 
अलावा 
मेरे दामन में कुछ भी नहीं - - - 

- शांतनु सान्याल  

02 अप्रैल, 2012


बंद आँखों की दुनिया 

न करो प्रत्याशा इतनी कि बोझ बन जाय जीवन,
मिलने और खोने में था अंतर केवल कुछ 
क्षणों का, चिरस्थायी कहाँ आलिंगन,
बंद आँखों में था सम्पूर्ण व्योम 
समाया, पलक खुलते ही 
उठ गए सभी तारों 
के समारोह,
भटक गयी हो शायद मेरी आवाज़ वादियों से -
गुज़रते, या बिखर गए हों स्वर लहर,
अच्छा ही हुआ तुमने न सुनी 
वो आर्तनाद, एक थकन,
कुछ  शून्यता, वो 
प्रतिध्वनि 
जो टूटती है बार बार, जुड़ने की उम्मीद लिए 
हज़ार, झंझा में जैसे कोई दीपक चाहे 
दीर्घ ज्वलन, डूबते तारों का वो 
दिव्य अवतरण या जीने 
की असीम अभिलाष
लिए मरू प्रांतर, 
ह्रदय की 
भी हैं अपनी ही मजबूरियां, ढूंढ़ता है विलुप्त 
अपनापन, चाह कर हटा नहीं पाता
देह से लिपटे मोह वल्लरी, 
अंतर से जुड़े असंख्य 
मायावी तंतु,
चाहता 
है आँखें बंद कर देखना स्वप्नों की दुनिया, या 
वक्ष जड़ित जीने की कोई अमूल्य 
वसीयत - - 

- शांतनु सान्याल 
April Morning - painting by - Vesna Vera 

01 अप्रैल, 2012

لا عنوان (शीर्षक विहीन ) हिंदी /اردو

इक तलाश जो जिस्मो जान से हो गुज़र गया, 
बराह रास्त न थे, ज़िन्दगी के मरहले फिर भी 
बमुश्किल धीरे धीरे क़िस्मत तेरा असर गया,
इस राह की भी हैं अपनी ही दर्दे दास्ताँ लेकिन 
हक़ीक़त जो भी हो, वो इब्दी तौर से संवर गया,
उस मंज़िल पे रौशन  हैं, यूँ  हज़ारों दवी चिराग़ 
दस्ते शमशीर का जत्था भी दो पल ठहर गया, 

- शांतनु सान्याल 
اک تلاش جو جسمو جان سے ہو گزر گیا،
براه راست نہ تھے، زندگی کے مرحلے پھر بھی
بمشکل دھیرے دھیرے قسمت تیرا اثر گیا،
اس راہ کی بھی ہیں اپنی ہی درد داستاں لیکن
حقیقت جو بھی ہو وہ ابدي طور سے سںور گیا،
اس منزل پہ روشن ہیں، یوں ہزاروں دوي چراغ
دستے شمشير کا جتتھا بھی دو پل ٹھہر گیا،
شانتنو سانیال 
angels-flight - Painting by Marina Petro

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