30 दिसंबर, 2011

नज़्म - - शर्तों में ही सही

शर्तों में ही सही, उसने साथ जीने की क़सम 
खाई है, फिर वहीँ से चल पड़े हम जहाँ 
पे कभी उसने साथ छोड़ा था, न 
जाने क्यूँ उसी मक़ाम पर 
आते ही उसकी 
उँगलियाँ 
ख़ुद ब
ख़ुद 
छोड़ जाती हैं हाथ मेरा, शायद उसे ऊँचाइयों 
से डर लगता है, लेकिन इन्हीं घाटियों 
से मिलती है प्रेरणा मुझ को, वो 
खौफ़ जो उसे रखती है दूर,
उन्हीं कांपती सांसों में,
ज़िन्दगी उसे थाम
लेती है सीने से 
लगा कर, 
बरबस !
ये कौन सी अदा है उसकी अक्सर सोचता हूँ 
मैं, जब कभी वो क़रीब आये इक 
ख़मोश खुमारी भी साथ लाये,
बहकना या डगमगाना
ये आदत तो आम 
है लेकिन 
उनकी 
आँखों का नशा है जाने क्या, जब भी देखा 
उन्हें डूब कर, ज़िन्दगी मुक़म्मल
 बेहोश नज़र 
आये ----

--- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/

  

28 दिसंबर, 2011

नज़्म - - ज़िन्दगी की राहें,

उठती हैं कहाँ से ये दीर्घ श्वास की बूंदें 
साँझ से बोझिल है ज़िन्दगी की 
राहें,राहतों का हिसाब
रखना न था आसां,
न जाने क्या 
पिलाते 
रहे 
वो दवा के नाम पर, हमने भी की बंद 
आँखें, मुहोब्बत के नाम पर, कहाँ 
से आती हैं ये रुक रुक की 
सदायें, दिल को अब 
तलक यकीं है
वो चाहते 
हैं मुझे, 
ये वहम ही हमें रोक रखता है क़रीब
उनके,  वर्ना बहारों को गुज़रे 
ज़माना हुआ - - - 

- - शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
 PAINTING BY Harry Brioche_evening_sky

05 दिसंबर, 2011

उद्भासित अंतर्मन

निबिड़, आर्द्र अंधकार में उभरती ज्योति पुंज !
प्रायः कर जाती है अंतर्मन आलोकित,
मैं और मेरी छाया, निस्तब्ध 
रात्रि में करते हैं वार्तालाप, 
कहाँ और कैसे छूट
गए मुलायम 
तटबंध,
कुछ अंकुरित स्वप्न, कुछ सुप्त अभिलाषाएं,
जीवन कगार में अध खिले कुछ अनाम
पुष्प, जो अर्ध विकसित ही रहे, 
खिल न सके वो घनीभूत 
भावनाएं, समय की 
तपन पिघला न 
सकी वो 
अतृप्त पिपासा, बिखरी ही रहीं जीर्ण पल्लव 
पर, अनमोल ओष बिन्दुओं के सदृश,
तुम्हारा प्रेम, चाह कर छू न सका 
वो गीत बिखरा रहा संवेदना 
के तारों पर लापरवाही 
से आजन्म, इस 
उधेड़बुन में 
व्यस्त रहा जीवन कि हो पूर्ण संग्रह ब्रह्माण्ड 
हथेलियों में सिमट कर, वो वृष्टि छायित 
भू भाग कभी भीग ही न पाया, 
जबकि सजल नयन थी 
सम्मुख हर पल, 
फिर कभी 
अगर 
पुनर्जीवन हो प्राप्त, ह्रदय लिखेगा वास्तविक 
जीवन उपसंहार, यर्थाथ की कड़वाहट,
नग्न सत्य, छद्मविहीन चरित्र,
सम्पूर्ण सौन्दर्य, आवरण -
हीन प्रतिबिम्ब,

- - शांतनु सान्याल

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past