28 नवंबर, 2011

मुक्क़दस आग 

राहतें थीं बहोत ख़ुद ख्वाह कर गयीं मुझे
मुझ से जुदा, वो मुस्कुराता रहा यूँ
देख मेरी बर्बादी का मंज़र,
चाहे अनचाहे ज़िन्दगी
ने उसे माफ़ किया,
हकीक़तन -
ये मैं ही था, जिसने जल जाने की -
क़सम खाई थी, ये वही मेरा
वहम है, जो कभी शम'अ 
बन न सका, तुम
जिसे कहते हो
मसीहा,
ये वही शख्स है जिसने दुआ के नाम पे
दी थी मुझे जीने की सज़ा, उसकी
मासूमियत में थी न जाने
कैसी कशिश, तीर
जिगर के पार
हुआ मगर
ज़रा
भी दर्द नहीं, हिरण जैसे ख़ुद ब ख़ुद दौड़
चले शिकारी के जानिब, ये बात
और है, कि न तुम ख़ुदा बन
सके न हमने ही अक़ीदत
में की ईमानदारी, जो
कुछ भी था हमारे
दरमियाँ, वो
रिश्तों की दहलीज़ पहुँच न सका, निगाहों
से धुंआ उठा ज़रूर मगर मुक्क़दस
आग में ढल न सका ।

-- शांतनु सान्याल

 مقّدس آگ

راهتے تھیں بهوت خدكھواه کر گئیں مجھے
مجھ سے جدا، وہ مسکراتا رہا یوں
دیکھ میری بربادی کا منظر،
چاہے ان چاہے زندگی
نے اسے معاف کیا،
هكيقتن --
یہ میں ہی تھا، جس نے جل جانے کی --
قسم کھائی تھی، یہ وہی میرا
وہم ہے، جو کبھی شمع
بن نہ سکا، تم
جسے کہتے ہو
مسیحا،
یہ وہی شخص ہے جس نے دعا کے نام پہ
دی تھی مجھے جینے کی سزا، اس کی
معصومیت میں تھی نہ جانے
کیسی كسيس، تیر
جگر کے پار
ہوا مگر
ذرا
بھی درد نہیں، ہرن جیسے خود بخود خود دوڑ
چلے شكاري کے جانب، یہ بات
اور ہے، کہ نہ تم خدا بن
سکے نہ ہم نے ہی عقیدت
میں کی ایمانداری، جو
کچھ بھی تھا ہمارے
درميا، وہ
رشتوں کی دهليذ پہنچ نہ سکا، نگاہوں
سے دھواں اٹھا ضرور مگر مقّدس
آگ میں ڈھل نہ سکا.
شانتانو  سانیال

27 नवंबर, 2011

परिंदे की तरह - -

ये ज़ख्म नहीं, हैं निशाने ज़िन्दगी, कराहों
में मैंने गुज़ारी है उम्र मुस्कुराकर,
तू चाहे तो बदल ले रास्ता
अपना, हमें तो आदत
है पिघलते राहों
में चलना,
यहीं पे कहीं था बैठा, ठिठुरता बचपन मेरा,
वक़्त की चादर थी छोटी, सहेज न
सकी नादानियाँ मेरी, खेलता
रहा तनहा नंगे बदन, इन
सर्द हवाओं में बारहा,
तेरा आँचल नहीं
मंज़िल मेरी,
करना है पार मुझे चाँद तारों की दुनिया,
वो थकन ही थी, हमराह दोस्त
मेरी, जिसने दिखाए हर
पल ख़्वाब नए, तू
मिला मुझे
ज़रूर
लेकिन तब तलक मैं सहरा पीछे छोड़
चुका, अब ये कारवां है घर मेरा,
हर क़दम इक नया वतन,
हर सांस पे रूकती है
मंज़िल मेरे लिए,
हवाओं के
रुख
का इंतज़ार न करना, न जाने कहाँ मेहरबां
हो जाएँ ये बंजारे बादल, चाह कर
भी मुश्किल है सराय में
रुकना, हूँ आदतन
इक जुनूनी
ग़र
रुक गया तो शायद फिर कभी उड़ न पाऊंगा.

-- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
  lake -Artist Jeanine Malaney


یہ زخم نہیں ، ہیں نشانے زندگی ، كراهو
میں نے گذاري ہے عمر مسکرا کر ،
تو چاہے تو بدل لے راستہ
اپنا ، ہمیں تو عادت
ہے پگھلتے راہوں
میں چلنا ،
یہیں پہ کہیں تھا بیٹھا ، ٹھٹھرتا بچپن میرا ،
وقت کی چادر تھی چھوٹی ، محفوظ نہ
سکی نادانيا میری ، کھیلتا
رہا تنہا ننگے بدن ، ان
سرد ہواؤں میں بارها ،
تیرا اچل نہیں
منزل میری ،
کرنا ہے پار مجھے چاند تاروں کی دنیا ،
وہ تھكن ہی تھی ، ہمراہ دوست
میری ، جس نے دکھائے ہر
پل خواب نئے ، تو
ملا مجھے
ضرور
لیکن تب تلک میں سهرا پیچھے چھوڑ
چکا ، اب یہ کارواں ہے گھر میرا ،
ہر قدم اک نیا وطن ،
ہر سانس پہ روكتي ہے
منزل میرے لیے ،
ہواؤں کے
رخ
کا انتظار نہ کرنا ، نہ جانے کہاں مےهربا
ہو جائیں یہ بجارے بادل ، چاہ کر
بھی مشکل ہے سرائے میں
رکنا ، ہوں ادتن
اک جنونی
غر
رک گیا تو شاید پھر کبھی اڑ نہ پاوگا.
- shantanu sanyal

10 नवंबर, 2011


क़ुर्बानगाह

फिर वही दस्तूर ज़माना, फिर वही क़ुर्बानगाहों
में लगे हैं मेले, किस से कहे दिल अपनी
वज़ाहत, हर शख्स यहाँ पुरअसरार,
देखे है उसे लानत की तरह,
इनक़लाब डूब चले
सभी उठने से
पहले,
सूरज के तूफ़ान छोड़ पाए न दायरा, उसी ज़मीं
में दहके ज़रूर लेकिन, राख़ से ज़्यादा
 न दे सके वो ज़िन्दगी को, न जाने
किस गिरफ़्त में थे वो लोग,
आंसू बहाए ज़रूर, ज़बां
न खोल पाए,
उतारते
रहे बार बार, सलीब से लहूलुहान ज़िन्दगी को,-
चाबुक के चमक में चीखती रही कहीं
मुहब्बत, तौहीन के डर से लोग
पढ़ते रहे, अनसमझ
किताबें, अज़ाब
का पैबंद
लगा
गए दानिशवर, पहेली से ज़ियादा न थे वो
परछाइयाँ, उभरे आसमां में यूँ
खुबसूरत कमान की
मानिंद, रंग बिखेर
पाते कि घिर
आई
बदलियाँ, फिर वही रात का सन्नाटा मुसलसल.

-- शांतनु सान्याल
Sun_God___Surya_by_DevaShard
قربانگاه

پھر وہی دستور زمانہ، پھر وہی قربانگاهو
میں لگے ہیں میلے، کس سے کہے دل اپنی
وضاحت، ہر شخص یہاں پراسرار،
دیکھے ہے اسے لعنت کی طرح،
انقلاب ڈوب چلے
تمام اٹھنے سے
پہلے،
سورج کے طوفان چھوڑ پائے نہ دائرہ، اسی زمیں
میں دهكے ضرور لیکن، راخ سے زیادہ
  نہ دے سکے وہ زندگی کو، نہ جانے
کس گرفت میں تھے وہ لوگ،
آنسو بہائے ضرور، ذبا
نہ کھول پائے،
اتارتے
رہے بار بار، سليب سے لهولهان زندگی کو، --
چابك کے چمک میں چیکھتی رہی کہیں
محبت، توہین کے ڈر سے لوگ
پڑھتے رہے، انسمجھ
کتابیں، عذاب
کا پےبد
لگا
گئے دانشور، بیت سے زیادہ نہ تھے وہ
پرچھايا، ابھرے آسماں میں یوں
كھبسورت کمان کی
ماند، رنگ بکھیر
پاتے کہ گھر
آئی
بدليا، پھر وہی رات کا سناٹا مسلسل.

شانتنو سانیال 

09 नवंबर, 2011

मेरा वहम

दिल फ़रेब ही सही कोई तो है चाहने वाला 
हमनफ़स न सही, बावाकिफ़ तो है 
वो बुझते हुए अंगारों से, 
उसकी सांसों की 
आंच ले घिर 
चले हैं 

फिर वादियों में सुरमई बादलों के महराब -
सूखे जरियान में उठ चलें  हैं 
चाहतों के लहर, खिल 
चले हैं वहशी गुल,
ज़िन्दगी फिर 
हमआहंग

है भूली बिसरी गीतों को गाने के लिए, न तोड़ 
यूँ मेरा वहम कि उठा हूँ मैं अभी अभी 
सजदे के बाद, उसके दिल में देखा 
है मैंने बुझते चिराग़ों की
रौशनी, सुफ़ियाना -
कायनात,

-- शांतनु सान्याल
  http://sanyalsduniya2.blogspot.com/ 

میرا وهم
دل فریب ہی سہی کوئی تو ہے چاہنے والا
همنفس نہ سہی، باواكف تو ہے
وہ بجھتے ہوئے انگاروں سے،
اس کی سانسوں کی
آنچ لے گھر
چلے ہیں

پھر مدعیان میں سرمي بادلوں کے مهراب --
سوکھے جريان میں اٹھ چلیں ہیں
چاهتو کے لہر، کھل
چلے ہیں وحشی گل،
زندگی پھر
هماهگ

ہے بھولی بسري گیتوں کو گانے کے لئے، نہ توڑ
یوں میرا وہم کہ اٹھا ہوں میں ابھی ابھی
سجدے کے بعد، اس کے دل میں دیکھا
ہے میں نے بجھتے چراغو کی
روشنی، سفيانا --
کائنات،
شانتنو سانیال 

06 नवंबर, 2011


भीगी ख्वाहिश 

मुद्दतों बाद फिर बारिश ने भिगोया दिल की 
सूखी ज़मीं, कहीं से तुमने फिर पुकारा 
है मुझे, सज चले हैं अपने आप 
अहसासों के टीले, फिर 
खिलना चाहें काँटों 
से झांकते हुए 
कैक्टस के 
फूल,
ज़िन्दगी करवट बदलती सी लगे है,भीगे 
ख़्वाब है बेताब गले मिलने को मेरे,
दामन में बूंदों की लड़ी लिए 
बैठी है रात, लेकिन 
निगाहों से जैसे 
नींद है खफ़ा,
नाराज़,
चाँद देखने की ज़िद लिए बैठा है, बहुत 
नादाँ है दिल मेरा ---

-- शांतनु सान्याल  
 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
PAINTING BY   -Don Valeri Grig de Kalaveras 

05 नवंबर, 2011


आसां नहीं ये दोस्त -

इस विरानगी से न पूछो जश्ने ज़िन्दगी के मानी 
इन गलियों न देखा कभी ईद ओ दिवाली,
इक तीरगी है जो मुसलसल बहती है - 
रग़ों से गुज़र कर दिलों तक, कि
उन ख़्वाब के खिलौने, जो 
शीशों में हैं ढले, न दे 
मुझे फिर वही 
खुबसूरत 
तोहफ़ा, टूट जायेंगे सभी, नाज़ुक हैं ये दिलों के 
रिश्ते, अक्श चाँद का था आरज़ी, पलक 
झपकते रात बिखेर जायेगी अँधेरा,
सीड़ियों से लगता है बहुत
क़रीब कहकशां  का 
शहर, लेकिन 
मुझे 
मालूम है, ब्रह्माण्ड की हकीक़त, कि शिफ़र में 
झूलतीं हैं अहद वादों की पर्चियां, तुम 
जी लो खुद के लिए यही कम नहीं,
न खाओ क़सम किसी और के 
लिए, आसां नहीं इतना 
कि लुटा जाओ 
दुनिया 
मुहोब्बत के लिए, 

-- शांतनु सान्याल 
rainbow_galaxy_Nina Yang Painting 

03 नवंबर, 2011

लापता हूँ मैं -

वो चाहते हैं मुझ से मिलना, न जाने किस -
लिए, सुना है उनकी नज़्मों में होता 
है ज़िक्र मेरा, दरअसल मेरे घर 
के आगे नहीं है कोई नदी, 
न ही आकाशगंगा, न 
कोई नील पर्वत,
न ही मचलता 
समुद्र तीर, 
इक 
ख़ामोशी है ज़िन्दा दूर तलक, यहाँ कोई 
अपना नहीं, यही क्या कम है कि
जी रहा हूँ मैं, ये कोई सपना 
नहीं, किसने दिया है 
उन्हें ग़लत पता,
ख़ुदा जाने, 
उनकी 
तलाश है सिमित, लौट जायेगी अपने ही 
द्वार से, खिड़कियों से चांदनी होती 
है शामिल रोज़ उनके ख़्वाबों
में कहीं, फिर खिलेंगे कुछ 
जूही ओ चमेली 
रात ढलते,
सुबह 
की चम्पई धूप में वो भूल जायेंगे मेरा ख़याल.

--- शांतनु सान्याल
 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/



   

01 नवंबर, 2011


इम्तहां न ले मेरा -

न आज़मा मुझे यूँ बार बार, कुछ तो
वक़्त मिले संवरने का मुझे,
तेरी ख्वाहिश में है न 
जाने कौनसा 
तिलिस्म,
सांस टूट कर भी चाहती है आसमां छूना,
ये इम्तहां मेरे लिए कोई नया नहीं, 
लेकिन हर एक पर्चे पे ज़िन्दगी 
पूछती है लाख सवाल, हर 
सवाल का जवाब होता 
है ज़िन्दगी का 
निचोड़,
इस आग की धारे में चलने की सज़ा ही 
आख़िर मुझे मिट्टी से सोना कर 
गई, वर्ना  दर्द के चमक थे 
फ़िके, हर एक ख़्वाब से 
पहले, रात पूछती 
है मेरी 
तमन्ना, 
सुबह है बर्बाद आशिक़ मेरा, रहता है खड़ा 
चाक गिरेबां, कहीं किसी बस्ती में,
कि ज़िन्दगी चाहती है उसे 
उसका हक़ लौटाना,
कुछ अश्क 
लबरेज़ 
ख़त, मुहब्बत का भरम,सीने की जलन -
और एक मुश्त साँसों की गर्मियां,
सुना है कि उसे है दम की
शिकायत, हो भी न 
क्यूँ कर, उम्र 
भर 
वो तकता रहा एक टक, मेरे चेहरे की तरफ.

-- शांतनु सान्याल
  http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
painting by Walfrido 
   

   

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