14 जुलाई, 2011


ला उन्वान  
इन ख़ून की बूंदों में न कर तलाश
अक्शे ख़ुदा, हर दर्द भरी चीख में 
है शामिल ज़िन्दगी, ये टूट के 
आँखों से जो गिरती हैं बूंदें इनमें 
हैं अनदेखे ख़्वाब कई, न कर 
बर्बाद कि बड़ी मुश्किल से उठी 
हैं साँसें इक नयी सुबह के लिए, न 
दे अज़ाब इन खिलते फूलों को 
ये हैं तो हर सै में हैं ख़ुशी के मानी 
तू जीत भी ले ग़र सारी दुनिया 
दिल की विरानगी को आबाद न 
कर पायेगा, आग नहीं जानता 
अपना पराया, न झुलस जाय कहीं 
ख़ुद का घर, बस्ती सुलगने से 
पहले, अक़ीदत जो न समझ पाए
जज़्बा-ए- इंसानियत, ऐसे राहे
फ़लसफ़ा से आख़िर क्या हासिल,   
-- शांतनु सान्याल 
 ला उन्वान  - शीर्षक विहीन 
  अज़ाब - शाप 
अक़ीदत - श्रद्धा

1 टिप्पणी:

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