05 जून, 2011

ज़िन्दगी

सुलगती है, ये रात फिर दोबारा
न कर जाय बर्बाद ख़्वाबों की वादियाँ 
बड़ी मुश्किल से हमने रोका था 
बादलों को शाम ढलते,
किसी के निगाहों से बहते आंसुओं की 
तरह, न हो यकीं तो पूछ लीजे 
इन ओंठों में नमीं है अब तलक मौजूद,
कैसे कह दें कि हमें तुमसे 
मुहोब्बत नहीं, उस मोड़ पे हमने आज
किसी के हथेलियों में ज़िन्दगी अपनी  
तर्ज़े हिना की मानिंद लिख आए हुज़ूर !
-- शांतनु सान्याल 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी
    सुलगती है, ये रात फिर दोबारा
    न कर जाय बर्बाद ख़्वाबों की वादियाँ
    बड़ी मुश्किल से हमने रोका था
    बादलों को शाम ढलते,
    बहुत सुंदर भावाव्यक्ति , बधाई

    जवाब देंहटाएं

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