06 मई, 2011

जाने किस ओर मुड़ गए वो सभी बंजारे बादल
देख सूखी रिश्तों की बेल, हम बहुत परेशां हुए
जोगी जैसा मासूम चेहरा, मरहमी दुवागो हाथ
आमीन से पहले,जाने कब व् क्यों लहुलुहान हुए
बूढ़ा बरगद, सुरमई सांझ, पक्षियों का कोलाहल
पलक झपकते, जाने क्यों ये  सब सुनसान हुए
खो से गए कहीं दूर, मुस्कराहटों के वो झुरमुट
आईने का शहर, और भीड़ में हम अनजान हुए
स्याह , खामोश, बेजान, बंद खिड़की ओ दरवाज़े
संग-ए-दिल,मुस्ससल दस्तक, हम पशेमान हुए
ज़िन्दगी भर दोहराया,आयत,श्लोक, पाक किताबें
मासूम की चीख न समझे,जी हाँ सभी बेईमान हुए
जाने किस देश में बरसेंगे मोहब्बत के गहरे बादल,
ज़मीं,गुल-ओ-दरख़्त,लेकिन अभी तो वीरान हुए .
----शांतनु सान्याल

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