06 मई, 2011

खामोश निगाहों की जुबान
और दिल की गहराइयाँ,
मुस्कानों का दर्द और
हसने की वो मजबूरियां,
किसे छोड़े किसे अपनाएं
नज़दीक हैं सभी परछाईयाँ
अंतहीन रिश्तों की चाहत
और निगलती तन्हाईयाँ,
ओ मुखातिब हैं निगाहों के
और रेत भरी वक़्त की आंधियां /
--- शांतनु सान्याल

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