14 नवंबर, 2010

उनके जाते ही --


याद आयी वो बात उनके जाते ही
जो कहना चाहे उन्हें बार बार
घिर आयी बरसात उनके जाते ही,
मिट गए क़दमों के निशाँ दूर तक
बिखर गए जज़्बात उनके जाते ही,
अहसास-ऐ-ज़िन्दगी का इल्म हुवा
थम सी गई हयात उनके जाते ही,
क़बल इसके दिल को राहत थी
दर्द बनी मुलाक़ात उनके जाते ही,
न कोई गिला न ही शिकायत थी
बदल गए हालात  उनके जाते ही,
दामन में सज़ाओं की कमी न थी
क़ैद हुई हर निज़ात उनके जाते ही,
सुबह-ओ -शाम की खबर कहाँ
थम सी गई क़ायनात उनके जाते ही,
यूँ तो आसना थे तमाम रहगुज़र से
क्यूँ पेश आयीं मुश्किलात उनके जाते ही,
खो गए फूल,सज़र ओ तितलियाँ
वीरान हुए बागात उनके जाते ही,
दर्पण है गुमसुम अक्स धुंधलाया सा
न बाक़ी कोई तिलिस्मात उनके जाते ही,
-- शांतनु सान्याल

9 टिप्‍पणियां:

  1. शांतनु जी,
    बहुत खूबसूरत गज़ल लिखते हैं आप, सच में।
    शुभकामनायें।
    ये वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा देंगे तो टिप्पणी करने वालों का समय व श्रम बचेगा, अनुरोध है।

    जवाब देंहटाएं
  2. दर्पण है गुमसुम अक्स धुंधलाया सा
    न बाक़ी कोई तिलिस्मात उनके जाते ही,

    बहुत खूब ..

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  4. अहसास-ऐ-ज़िन्दगी का इल्म हुवा
    थम सी गई हयात उनके जाते ही,
    क़बल इसके दिल को राहत थी
    दर्द बनी मुलाक़ात उनके जाते ही..

    Beautiful creation !

    .

    जवाब देंहटाएं
  5. दामन में सज़ाओं की कमी न थी
    क़ैद हुई हर निज़ात उनके जाते ही,

    इरशाद .....इरशाद ..बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल.

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय मित्रों दिल की गहराइयों से आप सभी लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा / आप लोगों से उत्साह व् स्नेह / मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी ,सस्नेह धन्यवाद /

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past