29 नवंबर, 2010

क्षणिका - - सजल नयन

सजल नयन थे ढूंढ़ न पाए हम तुमको
कुहासे  में ढक चुकी थीं पुष्प वीथिका,
अभिसारमय थे निशीथ व ज्योत्स्ना
खिले थे हर दिक मालती व यूथिका,
कण कण में थे ज्यूँ सोमरस घुले हुए
रौप्य या स्वर्ण रंगों में थी मृतिका,
विचलित ह्रदय एकाकी हंस अकेला
टूट बिखर जाय जैसे कोई वन लतिका,
-- शांतनु सान्याल

2 टिप्‍पणियां:

  1. विचलित ह्रदय एकाकी हंस अकेला
    टूट बिखर जाय जैसे कोई वन लतिका

    वेदना को भी खूबसूरत शब्द दिए हैं ...

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  2. आप का स्नेह जीवन को एक नया आयाम देता है - नमन सह /

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