01 दिसंबर, 2010

क्षणिका - - अरण्य पथ

अरण्य पथ में कुछ किंसुक कुसुम अब तक
पड़े हैं बिखरे, विगत  मधुमास की निशानी
पग चिन्हों तले  कहीं दबे हैं निसर्ग अर्घ्य
या भावनाएं, जीवन तो है लहर अनजानी
मैं डूब जाऊं उस नेह में हर बार हर जनम
प्रीत की गहराइयाँ हैं उनमें जानी पहचानी /
-- शांतनु सान्याल

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