बिखरे बिखरे अहसास, पिघलते मोम की तरह, बूंद बूंद रिसते हुए
पलकों में अश्क थमें हों जैसे आबसार कोई बियाबाँ के तहत,
जाहिर न हो आम, वो इक सुलहनामा था, भूल जाने का अहद
मुद्दतों से जिसे सजा रखा है, सुलगते दिल-ऐ-अरमाँ के तहत ,
वो शमा जो बुझ कर है रौशन, हज़ार शम्स के बराबर
कोई खुशबू-ऐ-हयात हो जैसे, बिखरा ज़मीं ओ आसमां के तहत,
कोई तो होगा जहाँ में, जिसे मालूम हो उसका ठिकाना
सहरा सहरा, वादी वादी ,मंज़र आये गए उम्र-ऐ- रवां के तहत,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद, हर शै पे लिखा पाया उसी का नाम
इक प्यास, इक आश दबी हो जैसे, हर इबारत-ऐ-बयां के तहत,
-- शांतनु सान्याल
पलकों में अश्क थमें हों जैसे आबसार कोई बियाबाँ के तहत,
जाहिर न हो आम, वो इक सुलहनामा था, भूल जाने का अहद
मुद्दतों से जिसे सजा रखा है, सुलगते दिल-ऐ-अरमाँ के तहत ,
वो शमा जो बुझ कर है रौशन, हज़ार शम्स के बराबर
कोई खुशबू-ऐ-हयात हो जैसे, बिखरा ज़मीं ओ आसमां के तहत,
कोई तो होगा जहाँ में, जिसे मालूम हो उसका ठिकाना
सहरा सहरा, वादी वादी ,मंज़र आये गए उम्र-ऐ- रवां के तहत,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद, हर शै पे लिखा पाया उसी का नाम
इक प्यास, इक आश दबी हो जैसे, हर इबारत-ऐ-बयां के तहत,
-- शांतनु सान्याल
bahot achhi gajal...............
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