27 अगस्त, 2010

इक ख्याल


इक ख्याल की, की हर शख्स को मिलता
उसके दामन से ज़रा जियादा
इक ख़्वाब जो देखा था कभी
मिल कर बाँट लें रंज ओ अलम अपने 
उस मोड़ पे तुमने क़सम तोड़ी 
इस राह में हमने क़सम खाई 
मिले न मिले मंजिल कोई ग़म नहीं 
तनहा हूँ तो क्या, दूर कहीं 
घुटती साँसों में अब तलक 
ज़िन्दगी का अक्स नज़र आता है ,
मुसलसल  तीरगी में भी ऐ दोस्त -
तेरा चेहरा नज़र आता है /
- - - शांतनु सान्याल

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